यदि आप इंटरनेट 🌐 चलाते हैं तो हो सकता है आपने कभी ना कभी यूआरएल (URL) शब्द के बारे में सुना हो। आपने यह शब्द जरूर सुना होगा तभी तो आप यहाँ तक पहुँचे हैं।
खैर, URL कोई एलियन फंडा नहीं है जिसे हम समझ ना सकें। इस पोस्ट में हम URL के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और जानेंगे यूआरएल क्या होता है, कहाँ से इसकी उतपत्ती हुई आदि।
URL क्या है
URL का फुल फॉर्म Uniform Resource Locator है। URL इंटरनेट पर उपस्थित किसी भी कॉन्टेंट (जैसे – इमेज 🖼️, वेब पेज 📄, वीडियो🎞️, डॉक्यूमेंट📜 आदि ) का पता होता है जिसे हम “वेब एड्रेस” के नाम से भी जानते हैं।
इंटरनेट पर पब्लिश हर चीज जिसे एक्सेस किया जा सकता है उसका URL पता होता है। जिस तरह आम जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को अपना स्थान बताने के लिए पता की जरूरत होती है उसी प्रकार इंटरनेट पर उपलब्ध हर चीज का स्थान बताने के लिए पता की जरूरत होती है। तकनीकी भाषा में हम इसे ही URL कहते हैं।
समझने के लिहाज से आप बस इतना जानलें की यह इंटरनेट पर उपलब्ध चीजों का पता है।
URL की शुरूआत वल्ड वाइड वेब के जनक टिम बर्नर्स ली ने 1994 में की थी।
उदाहरण
यह लेख जो आप इस समय पढ़ रहे हैं यह भी एक वेब पेज पर उपलब्ध है।
तो क्या इस पेज का भी कोई पता (URL) होगा ?
हाँ, इस वेब पेज का भी URL है। आप अपने ब्राउज़र के एड्रेस बार में इस पेज का URL देख सकते हैं जो कुछ इस तरह दिख रहा होगा।
https://www.techsahaayata.com/url-uniform-resource-locator
यूआरएल की संरचना (Structure of URL)
URL के कई हिस्से होते हैं (जैसे – स्कीम, डोमेन नेम, पोर्ट, पाथ, पेरामीटर, एंकर आदि) इन्हीं छोटे-छोटे हिस्सों से मिलकर ही एक संपूर्ण URL बनता है।
एक URL में यह सभी के सभी हिस्से (जैसे – स्कीम, डोमेन नेम, पोर्ट, पाथ, पेरामीटर, एंकर आदि) हों ऐसा जरूरी नहीं है। पर एक URL में स्कीम, डोमेन नेम का होना अति आवश्यक है इन दोनों हिस्सों के बिना कोई URL संपूर्ण नहीं हो सकता है।
URL के भाग
जैसा की आप ऊपर फोटो में देख सकते हैं की एक संपूर्ण URL कई हिस्सों से मिलकर बनता है। आइए इन्हीं हिस्सों के बारे में थोड़ा विस्तार से चर्चा करें।
एक संपूर्ण URL में निम्न हिस्से होते हैं।
- स्कीम (Scheme)
- सब-डोमेन (Subdomain)
- डोमेन नेम (Domain name)
- पोर्ट (Port)
- पाथ (Path)
- पैरामीटर (parameters)
- एंकर (Anchor)
स्कीम (Scheme)
URL का पहला हिस्सा स्कीम होता है जो किसी प्रोटोकॉल को दर्शाता है। जिसका उपयोग ब्राउज़र इंटरनेट पर उपलब्ध संसाधनों को प्राप्त करने के लिए करते हैं।
सामान्य तौर पर वेबसाइट को एक्सेस करने के लिए जो प्रोटोकॉल इस्तेमाल किया जाता है वह http
या https
होता है।
http
, https
की तुलना में असुरक्षित होता है क्योंकि http
में भेजी जाने वाली रिक्वेस्ट (request) और प्राप्त होने वाले रिस्पॉन्स (response) में किसी भी प्रकार के एन्क्रिप्शन (encryption) का उपयोग नहीं होता है। जबकि https
में रिक्वेस्ट और रिस्पॉन्स दोनों में एन्क्रिप्शन का उपयोग होता है।
http के अलावा और भी प्रोटोकॉल हैं जैसे –
mailto:
– मेल क्लाइंट खोलने के लिएftp
– सर्वर पर फाइल्स ट्रांसफर करने के लिए
वेब के संदर्भ में सामान्य तौर पर इन्हीं प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया जाता है।
डोमेन नेम (Domain name)
डोमेन नेम वेबसाइट का नाम ही होता है। सामान्य तौर पर वेब पते में www. के बाद आता है और इमेत पते में @ के बाद आता है उसे डोमेन नेम कहते हैं
उदाहरण
techsahaayata.com
google.com
gmail.com
आदि यह डोमेन नेम के उदाहरण हैं।
✓ डोमेन नेम सिस्टम क्या है तथा कैसे काम करता है
सब डोमेन (Subdomain)
सब-डोमेन आपके मुख्य डोमेन नाम का एक अतिरिक्त हिस्सा है। सब-डोमेन आपकी वेबसाइट के विभिन्न अनुभागों को व्यवस्थित और नेविगेट करने के लिए बनाया जाता है।
सब-डोमेन को चाइल्ड डोमेन भी कहते हैं।
यह किसी url में उपस्थित हो ऐसा जरूरी नहीं है।
सब-डोमेन के उदाहरण
https://www.techsahaayata.com/
इसमें www, techsahaayata.com का सब-डोमेन है।
https://subdomain.maindomain.com इसमें subdomain, maindomain.com का सब-डोमेन है।
https://sub.example.com इसमें sub, example.com का सब डोमेन है और example.com मुख्य डोमेन है।
टॉप लेवल डोमेन – TLD (Top Level Domain)
टॉप लेवल डोमेन, डोमेन नेम का ही भाग होता है। डोमेन नेम में डॉट (“.”) के बाद आने वाले भाग को टॉप लेवल डोमेन कहते हैं।
उदाहरण
google.com
में “.com” टॉप लेवल डोमेन है।
wikipedia.org
में .org मेंं टॉप लेवल डोमेन है।
लोकप्रिय टॉप लेवल डोमेन की सूची
- .com व्यावसायिक वेबसाइट के लिए
- .org संस्थानों की वेबसाइट के लिए
- .net इंटरनेट संबंधी वेबसाइट के लिए
- .gov सरकारी वेबसाइट के लिए
- .edu शिक्षा संबंधी वेबसाइट के लिए
पोर्ट – Port
सामान्य तौर पर पोर्ट URL में अदृश्य होता है। पोर्ट वेब सर्वर पर संसाधनों तक पहुँचने के लिए उपयोग किए जाने वाले तकनीकी “गेट” को दर्शाता है।
यदि सर्वर पर उपलब्ध संसाधनों को एक्सेस करने के लिए स्टेंडर्ड पोर्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है। (http के लिए 80, तथा https के लिए 443) तो URL में पोर्ट लगाना जरूरी नहीं होता अन्यथा URL में पोर्ट का होना अनिवार्य है।
पाथ – Path
path का हिन्दी में अर्थ होता है “रास्ता” url के संदर्भ में पाथ किसी भी संसाधन का रास्ता होता है।
उदाहरण के अनुसार
path/to/myfile.html
वेब सर्वर पर संसाधन (myfile.html) का पाथ है
आसान भाषा में कहा जाए तो कोई संसाधन सर्वर पर किस स्थान पर उपलब्ध है उसे पाथ कहते हैं।
वेब के शुरुआती दिनों में, इस तरह का एक पाथ वेब सर्वर पर एक भौतिक फ़ाइल स्थान को दर्शाता था। आजकल, यह ज्यादातर बिना किसी भौतिक वास्तविकता के वेब सर्वर द्वारा नियंत्रित किया जाने वाला एक abstraction मात्र है।
पैरामीटर – Parameters
पैरामीटर क्वेरी के रूप में अतिरिक्त जानकारी होती है। जिसे सर्वर अलग अलग तरीके से हैंडल करता है।
उदाहरण के लिए ?s=सर्च
किसी भी वर्डप्रैस साइट पर डोमेन नेम के बाद मेंं ?s= के बाद में जो भी सर्च टर्म लिखोगे वह उस वेबसाइट पर सर्च हो जाएगा।
पैरामीटर क्वेरी किसी भी URL की अतिरिक्त जानकारी के अलावा कुछ नहीं है जिसे सर्वर अपने तरीके से हैंडल करता है।
एंकर – Anchor
एंंकर एक बुकमार्क की तरह काम करता है। यह किसी वेब पेज पर एक सेक्शन से दूसरे सेक्शन में नेविगेट करने के काम आता है।
इसका उपयोग पेज में किसी विशेष बिन्दु पर पहुँचने के लिए भी किया जाता है।
यह URL के अंत में प्रदर्शित होता है और हैश (#) से शुरु होता है।
उदाहरण के लिए आप URL कैसे काम करता है पर क्लिक कीजिए और आप उस वाले बिन्दु पर पहुँच जाएंगे जहाँ URL के काम करने के बारे में बताया गया है।
डोमेन नेम और URL में अंतर
डोमेन नेम URL का भाग होता है। डोमेन नेम के अलावा प्रोटोकॉल, पाथ, पैरामीटर, एंकर आदि चीजों से मिलकर संपूर्ण URL बनता है।
एक URL में प्रोटोकॉल होता है पर डोमेन नेम में प्रोटोकॉल नहीं होता।
https://www.example.com
यह एक URL है
example.com
यह एक डोमेन नेम है।
वेब एड्रेस और URL में अंतर
क्या वेब एड्रेस और URL में अंतर होता है?
हाँ, आमतौर पर लोग वेब एड्रेस और URL शब्द का उपयोग एक दूसरे की जगह कर देते हैं लेकिन इसमें एक छोटा सा अंतर है जो आमतौर पर लोग इसे अनदेखा कर देते हैं।
वेब एड्रेस इंटरनेट पर उपलब्ध किसी वेब पेज का एड्रेस होता है। वेब एड्रेस URL का ही भाग होता है लेकिन अंतर यह है की वेब एड्रेस में http
या https
प्रोटोकॉल का उपयोग होता है जबकि URL में इन दो स्कीम के साथ-साथ ftp://
, smtp://
, pop://
, irc://
, आदि का भी उपयोग किया जाता है।
http बनाम https
http और https दोनों का उपयोग सर्वर से डाटा प्राप्त करने के लिए किया जाता है ताकि हम उस डाटा को ब्राउज़र पर देख सकें।
अंतर बस इतना है की https, Secure Sockets Layer (SSL) certificate का इस्तेमाल करता है ताकि सर्वर और यूज़र के बीच के कनेक्शन को एन्क्रिप्ट किया जा सके।
HTTPS संवेदनशील जानकारी, जैसे पासवर्ड, क्रेडिट कार्ड नंबर आदि सूचना को अनधिकृत पहुंच से बचाने के लिए महत्वपूर्ण है।
http में एन्क्रिप्शन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसलिए उन वेबसाइट पर अपनी कोई भी जानकारी ना डालें जो http प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करती हों।
URL शॉर्टनर्स – URL shorteners
URL शॉर्टनर्स वे सेवाएं हैं जिनकी सहायता से किसी लंबे दिखने वाले URL को छोटा किया जाता है। लंबे URL किसी को पसंद नहीं होते हैं।
उदाहरण
नीचे दिया गया URL बहुत लंबा है जो किसी भी डॉक्यूमेंट की बहुत ज्यादा जगह घेरेगा।
https://www.amazon.in/Redmi-9A-2GB-32GB-Storage/dp/B08696XB4B/ref=sr_1_3?dchild=1&keywords=mobile&qid=1627160370&sr=8-3
यदि हम इसी URL को छोटा कर दें तो यह दिखने में भी सुंदर होगा और कम जगह भी लेगा।
https://amzn.to/3kRZpBJ
यह भी वही URL है जो ऊपर दिखाया गया है बस इसे छोटा कर दिया गया है।
URL शॉर्टनर्स काम कैसे करते हैं?
URL शॉर्टनर्स खास एल्गोरिथ्म का उपयोग करके URL को छोटा बना देते हैं। जब कोई यूज़र इस छोटे URL को विजिट करता है तो सर्वर उस यूज़र को उस लंबे वाले URL पर रीडायरेक्ट कर देता है जिसे URL शॉर्टनर्स सेवा के जरिए छोटा किया गया था।
URL शॉर्टनर्स का उपयोग क्यों किया जाता है ?
URL शॉर्टनर्स का उपयोग लोग वेब पेज के एनालिटिक्स जानने के लिए करते हैं की पेज पर किसी खास लिंक द्वारा कितने लोग विजिट कर रहे हैं।
कभी कभी लोग URL को ट्विटर पर शेयर करना चाहते हैं लेकिन ट्विटर पर 280 characters की लिमिट है इस कारण से लोग URL को छोटा करते हैं।
URL को छोटा करने के लिए लोग bit.ly और tinyurl जैसी सेवाओं का उपयोग करते हैं।
URL कैसे काम करता है
जब कोई यूज़र किसी URL को ब्राउज़र में डालता है या लिंक के जरिए विज़िट करता है। तब ब्राउज़र उस url में उपस्थित डोमेन नेम की आई.पी एड्रेस से कनेक्ट होता है। इसके लिए वह DNS तकनीक का सहारा लेता है।
जब ब्राउज़र आई पी एड्रेस से कनेक्ट हो जाता है तब यूज़र के द्वारा रिक्वेस्ट की गई सूचना को सर्वर से रिट्रीव कर ब्राउज़र पर प्रदर्शित कर देता है।
निरंतर पूछे जाने वाले प्रश्न – Faq
URL का फुल फॉर्म क्या है ?
URL का फुल फॉर्म Uniform Resource Locator है।
https का फुल फॉर्म क्या है ?
https का फुल फॉर्म Hypertext Transfer Protocol Secure है।
ftp का फुल फॉर्म क्या है
ftp का फुल फॉर्म File Transfer Protocol है।
URI का फुल फॉर्म क्या है।
URI का फुल फॉर्म Uniform Resource Identifier है।
URL कैसे खोलें ?
URL खोलने के लिए आप हाईपरलिंक पर क्लिक कर सकते हैं या URL को कॉपी करके ब्राउज़र के एड्रेस बार में पेस्ट करके भी URL को खोल सकते हैं।