इंटरनेट की परिकल्पना किस प्रकार हुई, और यह कैसे अपने वर्तमान स्वरूप में पहुँचा यह एक बड़ा स्वाभाविक-सा प्रश्न है जो की प्रत्येक इंटरनेट उपयोगकर्ता के मस्तिष्क में उभरता है। इंटरनेट मूलतः सैन्य गतिविधियों का परिणाम है। बात उस समय की है जब रूस व अमेरिका के मध्य शीत युद्ध जारी था। दोनों ने अनेक परमाणु हथियार विकसित कर लिये थे। उस समय अमेरिका के रैण्ड कॉरपोरेशन , जो की अमेरिका सेना का प्रमुख सलाहकार संगठन था, ने एक ऐसे कंप्यूटर नेटवर्क की परिकल्पना की जो की परमाणु हमले के बाद भी कार्य कर सके तथा एक कंप्यूटर -नेटवर्क मार्ग का प्रयोग करते हुए नेटवर्क व्यवस्था स्वतः ही जारी रक् सके। इससे पहले कंप्यूटर को श्रेणीक्रम (Series Line ) में ही जोड़ा जाता था अर्थात यदि एक कंप्यूटर खराब हो गया तो आगे का नेटवर्क बिगड़ जाता था इसे पॉइंट टू पॉइंट (point to point )प्रकार का नेटवर्क कहा जाता था।
इंटरनेट की विकास यात्रा को लगभग 40 -45 साल हो गये हैं। इंटरनेट का पितामह केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर लियोनार्डो क्लीनरॉक को कहा जाता है। डॉ. क्लीनरॉक और उनके साथियों ने 2 सितम्बर,1969 को दो कंप्यूटर के बीच संवाद कायम करने में सफलता पाई थी। यह संवाद रेफ्रिजरेटर के आकर के एक राऊटर के जरिए बना था जिसे इंटरफ़ेस मैसेज प्रोसेसर कहा गया। वास्तव में दो कम्प्यूटरों ने आपस में 20 ऑक्टूबर 1969 को बात की। अमेरिकी सरकार की उन्नत अनुसन्धान परियोजना एजेंसी अरपा (ARPA ) ऐसा नेटवर्क कायम करने के लिए धन के रही थी जिससे चुने हुए केंद्र के शोधकर्ताओं के एक-दूसरे के कंप्यूटर का इस्तेमाल करने की क्षमता मिल सके। आरम्भ में जो नेटवर्क बना उसे अर्पानेट (Arpanet ) कहा जाता था।
डॉ. क्लीनरॉक और उनके साथियों को यह नहीं पता था की भविष्य में इंटरनेट से इतनी संभावनाएं निकल आएंगी। जो परियोजना शीतयुद्ध के काल में अमेरिका की सुरक्षा – आवश्यकताओं से शुरू हुई थी, वह अब सूचना, मनोरंजन, ज्ञान-विज्ञान संवाद-वहन और उन सबसे बढ़कर व्यापार के माध्यम के रूप में विकसित हो जाएगा। इंटरनेट द्वारा वर्ल्ड वाइड वेब का रूप लेने की यह यात्रा 1980 के दशक में हुई। जब डॉ. टीम बर्नर्स ली (Tim Berners lee ) ने अपनी निजी इस्तेमाल के लिए एक छोटा कंप्यूटर प्रोग्राम लिखा। इस प्रोग्राम से उनके कंप्यूटर के भीतर लिखे पत्रों को आपस में जोड़ने की सुविधा मिली। जल्दी ही इंटरनेट द्वारा अलग अलग कम्प्यूटरों के बीच दस्तावेजों को जोड़ पाना संभव हुआ। इन दस्तावेजों को जोड़ने के लिए जिस फॉर्मेट का उपयोग किया गया , उसे HTML कहा गया।