वर्चुअल रियलिटी जिसे संक्षिप्त में “VR” और हिन्दी में “आभासी वास्तविकता” कहते हैं। तकनीक जगत में हो रहे विकास की खबरें सुनते सुनते आपने कभी न कभी वर्चुअल रियलिटी या VR शब्द का उपयोग होते जरूर सुना होगा।
शायद इसीलिए आप यह लेख पढ़ रहे हैं ताकि वर्चुअल रियलिटी क्या होती है, इसे अच्छे से जान सकें।
वर्चुअल रियलिटी दो शब्दों से मिलकर बना है, वर्चुअल और रियलिटी। वर्चुअल रियलिटी को समझने से पहले हम रियलिटी (Reality) यानी वास्तविकता को समझ लेते हैं।
हम जो चीजें देख और महसूस कर पा रहे हैं ये वास्तविक हैं या नहीं, इस चीज का पता लगाने के लिए हम अपनी इंद्रियों (senses) का उपयोग करते हैं। हमारी पाँच इंद्रियाँ जिनमें, आँख – जिससे हम देखते हैं, कान – जिससे हम सुनते हैं, नाक – जिससे हम सूंघते हैं, जीभ – जिससे हम स्वाद लेते हैं। और हाथ – जिससे हम स्पर्श करते हैं।
जब हम अपनी वास्तविक दुनिया में जीवन जीते हैं तो हमें अपने आसपास के वातावरण की सारी जानकारी इन्हीं इंद्रियों के माध्यम से ही प्राप्त होती है।
इन इंद्रियों के सहारे ही हम रियलिटी (जिस वास्तविक दुनिया में हम हैं) में जी रहे हैं। और इन्हीं इंद्रियों के माध्यम से ही हम बता पाते हैं की कोई चीज रियल है या नहीं।
वर्चुअल शब्द का मतलब है की कोई चीज वास्तविक नहीं है बस उस चीज को वास्तविक होने का आभास कराया जा रहा है।
तो अब आप वर्चुअल और रियलिटी दोनों शब्द का मतलब जान चुके हैं।
वर्चुअल रियलिटी क्या होती है ?
वर्चुअल रियलिटी एक ऐसा कॉन्सेप्ट है जिसके माध्यम से हम कंप्यूटर द्वारा निर्मित किसी 3D दृष्य या घटना को आभासी रूप में महसूस करते हैं। वह 3D दृष्य या घटना कंप्यूटर द्वारा निर्मित है फिर भी हमें वहाँ होने का आभाष होता है जबकि वास्तविक रूप में हम अपने कमरे में ही होते हैं। इसे ही आभासी वास्तविकता या वर्चुअल रियलिटी कहा जाता है।
कंप्यूटर द्वारा निर्मित 3D दुनिया या कोई वातावरण को हमें वास्तविक महसूस कराने के लिए बहुत से उपकरणों का उपयोग किया जाता है ताकि हमें सभी इंद्रियों के माध्यम से जानकारी मिलती रहे जैसी हमें अपनी वास्तविक दुनियाँ में मिलती है ताकि हम वैसी ही दुनिया महसूस करें जैसी वास्तविक रूप में हम जीते हैं।
वर्चुअल रियलिटी अनुभव करने के लिए कौन-कौन से उपकरणों की जरूरत पड़ेगी?
कंप्यूटर द्वारा निर्मित 3D दुनिया में हमें बहुत से उपकरणों के माध्यम से इंद्रियों को जानकारी भेजी जाती है ताकि हम वैसी दुनिया महसूस कर सकें जैसी वास्तविक रूप में हम जीते हैं।
आँखों के लिए HMDs, कानों के लिए हैडसेट, हाथों के लिए डाटा ग्लव्स (Datagloves) और कई ए़डवांस वर्चुअल रियलिटी अनुभव कराने वाली जगहों पर तो नाक से सूंघने के लिए भी स्मेल का उपयोग किया जाता है।
HMDs (Head Mounted Displays) – हेड माउंटेड डिस्प्ले (HMDs) छोटे डिस्प्ले या प्रोजेक्शन टेक्नोलॉजी होती है जो चश्मों या हैलमैट के साथ इंटीग्रेटेड होती है।
Headset – हैडसेट एक ऑडियो डिवाइस होता है जो हमारे कानों के लिए ऑडियो इनपुट देता है।
DataGloves – वास्तविक दुनिया हो या वर्चुअल दुनिया जब भी हम कुछ नया देखते हैं तो हमारा मन उसे छूने और महसूस करने को करता है। वास्तविक दुनिया में हम किसी भी वस्तु को अपने हाथों से छूकर महसूस कर सकते हैं।
जब हम कंप्यूटर द्वारा निर्मित वर्चुअल दुनिया में होते हैं तो वहाँ पर मौजूद किसी वस्तु को छू पाना आसान नहीं होता। वहाँ पर मौजूद किसी भी वस्तु को छूने या इंटरैक्ट करने के लिए हमें डाटाग्लव्ज़ की जरूरत होती है।
दिखने में डाटाग्लव्ज़ सामान्य ग्लव्ज़ के जैसे हो सकते हैं लेकिन इनमें सेंसर लगे होते हैं जो हाथ तथा उँगलियों के मोशन (motion) को पहचानने की कोशिश करते हैं। मोशन के आधार पर ही वे कंप्यूटर को सूचना भेजते हैं की यूजर क्या करना चाह रहा है। यूजर किसी वस्तु को उठा रहा है, फैक रहा है या एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहा है, कंप्यूटर को इसकी जानकारी डाटाग्लव्ज़ के माध्यम से पता चलती है।
Wands – वैंड एक कंट्रोलर की तरह होता है जिसमें बहुत से सेंसर लगे होते हैं। वैंड का उपयोग वर्चुअल दुनिया में किसी वस्तु को टच, पॉइंट या इंटरेक्ट करने के लिए किया जाता है क्योंकि इसमें डाटा ग्लव्ज़ की तरह बहुत से सेंसर और बटने लगी होती हैं जिससे किसी Object के साथ इंटरेक्ट कर पाना आसान हो जाता है।
वैंड किस तरह काम करते हैं आप नीचे वीडियो में देख सकते हैं-
टेक्नोलॉजी में रुची रखने वाले बड़े बड़े विशेषज्ञों का मानना है की भविष्य में तकनीक और इंटरनेट में VR तकनीक का बहुत ज्यादा उपयोग होगा। हर क्षेत्र अपने अपने तरीके से वर्चुअल रियलिटी का उपयोग करेगा।
फेसबुक के CEO मार्क जकरवर्ग VR को लेकर बहुत उत्साहित हैं। मार्क VR का भविष्य उनके आने वाले प्रोजेक्ट मेटावर्स में देखते हैं।
वर्चुअल रियलिटी को भविष्य में कई क्षेत्रों में उपयोग किया जाएगा। अभी भी वर्चुअल रियलिटी को कई क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है।
वर्चुअल रियलिटी के उपयोग –
वर्चुअल रियलिटी अभी भी परफैक्ट नहीं हुआ है फिर भी इसके अनेकों उपयोग हैं। हाल ही की खबरों के अनुसार मार्क जकरबर्ग मेटावर्स प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं जिसमें वर्चुअल रियलिटी को बहुत ज्यादा उपयोग किया जाएगा।
अभी के लिए देखा जाए तो वर्चुअल रियलिटी का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जा रहा है और आने वाले समय में वर्चुअल रियलिटी का बहुत ज्यादा उपयोग किया जाएगा।
शिक्षा के क्षेत्र में वर्चुअल रियलिटी का उपयोग –
शिक्षा के क्षेत्र में वर्चु्अल रियलिटी का उपयोग हो रहा है। आने वाले समय में वर्चुअल रियलिटी का उपयोग और बेहतर तरीके से हो सकता है।
हम यह अच्छे से जानते हैं कि बच्चे बोरिंग लेक्चर के बजाए चीजों को देखकर जल्दी सीखते हैं। किसी भी विषय को बच्चों के सामने वर्चुअल वातावरण में प्रस्तुत किया जाए जिससे बच्चे विषय से संबंधित चीजों के साथ इंटरेक्ट कर सकें तो वे बड़ी ही आसानी से उस विषय के बारे में सीख सकते हैं।
स्कूल की म्यूजियम ट्रिप भौतिक रूप से करने की बजाए इसे वर्चुअली किया जा सकता है। जिससे बच्चों को बिना स्कूल से बाहर ले जाए हर पुरानी चीज के बारे में पढ़ाया और दिखाया जा सकता है।
वर्चुअल म्यूजियम में बच्चे किसी भी वस्तु को उठा सकते हैं, किसी भी वस्तु को अपने हाथ में लेकर 360° में देख सकते हैं किसी भी चीज का टूटने-फूटने या चोरी होने का डर नहीं रहेगा।
बायोलॉजी (जीव विज्ञान) जैसे जटिल विषयों के बारे में बच्चे बड़ी ही आसानी से सीख सकते हैं क्योंकि शरीर की हर नस या कोशिका को वर्चुअली 3D शरीर के माध्यम से दिखाया जा सकता है जिसे देखकर बच्चे आसानी से सीख सकते हैं।
वर्चुअल रियलिटी की मदद से सौर मंडल जैसे जटिल विषयों को बड़े ही रोमांचक तरीके से समझाया जा सकता है। इससे बच्चों का मनोरंजन के साथ-साथ पढ़ाई भी हो जाएगी।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में वर्चुअल रियलिटी का उपयोग
स्वास्थ्य के क्षेत्र में वर्चुअल रियलिटी का उपयोग कुछ हद तक होता आ रहा है। ऐसी कई बीमारी हैं जिनके उपचार में वर्चुअल रियलिटी का उपयोग किया जाता है।
दर्द प्रबंधन (Pain Management) – कई बार डॉक्टर को ऐसी सर्जरी करना पड़ता है जिसे करते वक्त मरीज को दर्द हो सकता है उस दर्द से ध्यान भटकाने के लिए वर्चुअल रियलिटी का उपयोग किया जाता है ताकी मरीज का ध्यान वर्चुअल दुनिया में केंद्रित रहे और डॉक्टर अपनी सर्जरी आसानी से कर सकें। जैसे डेंटिस द्वारा दांत निकालने के लिए।
हालांकि इसका उपयोग अभी बहुत बड़े स्तर पर नहीं हो रहा है। पर आने वाले समय मैं जैसे-जैसे वर्चुअल रियलिटी का उपयोग बढ़ेगा वैसे-वैसे इसके और अधिक उपयोग सामने आते जाएंगे।
मेडिकल ट्रेनिंग – अच्छा सर्जन (शल्य चिकित्सक) बनने के लिए अच्छे ज्ञान के साथ-साथ अच्छे प्रशिक्षण की भी जरूरत होती है। जब भी कोई व्यक्ति सर्जन बनता है तो वह शीधा लोगों का ऑपरेशन नहीं करने लगता। वह एक प्रक्रिया के तहत बहुत कड़े प्रशिक्षण से होकर गुजरता है। ताकि जब वह लोगों की सर्जरी करे तो कोई गलती की गुंजाइस ना हो।
ऐसे व्यक्ति के प्रशिक्षण के लिए वर्चुअल रियलिटी तकनीक बहुत काम आती है। वर्चुअल रियलिटी तकनीक के माध्यम से व्यक्ति कंप्यूटर जनरेटेड शरीर पर सर्जरी का अभ्यास कर सकता है ताकि जब वह असली आदमी पर सर्जरी करे तो गलती की गुंजाइस कम हो।
यह तो बस शुरूआत है आने वाले समय में वर्चुअल रियलिटी का स्वास्थ्य के क्षेत्र में हर संभव उपयोग किया जाएगा।
इंडस्ट्रियल डिज़ाइन और आर्किटेक्चर के क्षेत्र में VR का उपयोग
आर्किटेक्चर तथा डिज़ाइन बहुत ही मेहनत और समय खपा देने वाला काम होता है। इसमें बहुत ज्यादा पैसों के साथ-साथ धैर्य भी लगता है।
ऐसे कार्य में बहुत ज्यादा पैसा शामिल होता है इसलिए क्लाइंट को यह यकीन दिला पाना काफी कठिन होता है कि जैसा प्रोजेक्ट आप कंप्यूटर की 2D स्क्रीन पर देख रहे हैं वह पूरा हो जाने के बाद इससे काफी सुंदर लगेगा।
क्लाइंट को प्रोजेक्ट के लिए मनाने अथवा यह विश्वास दिलाने के लिए की यह प्रोजेक्ट आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा उसके लिए वर्चुअल रियलिटी तकनीक बहुत कारगर रही है। क्योंकि वर्चुअल रियलिटी तकनीक की मदद से क्लाइंट को यह दिखाया जा सकता है कि प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद कैसा दिखेगा।
वर्चुअल रियलिटी का उपयोग करने के और भी कुछ फायदे हैं –
- वर्चुअल रियलिटी की मदद से क्लाइंट को यह दिखा पाना संभव हो सका है की प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद कैसा लगेगा। इससे क्लाइंट को प्रोजेक्ट के लिए मनाने में आसानी हो जाती है।
- वर्चुअल रियलिटी तकनीक की मदद से क्लाइंट प्रोजेक्ट बनने से पहले ही उसको अच्छी तरह से अनुभव कर पाता है इसलिए वह बदलाव की जरूरतों को समय रहते आर्किटेक्चर को बता पाता है इससे प्रोजेक्ट की लागत तथा समय दोनो बचता है।
- प्रोजेक्ट का बार-बार रिविज़न (Revisions) नहीं करना पड़ता है।
ट्रेनिंग के क्षेत्र में वर्चुअल रियलिटी का उपयोग
किसी भी कार्य को अच्छे से सीखने के लिए ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है। ट्रेनिंग में बहुत ज्यादा लागत के साथ-साथ कई बार नुकसान का भी खतरा होता है।
ट्रेनिंग में होने वाली लागत और नुकसान से बचने के लिए वर्चुअल रियलिटी का उपयोग किया जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं-
पायलेट की ट्रेनिंग – किसी भी व्यक्ति के पायलेट बनने से पहले उसे प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग दी जाती है। पायलेट की ट्रेनिंग के दौरान उसको असली प्लेन उड़ाने से पहले वर्चुअल प्लेन जो की एक कंप्यूटर जनरेटेड सिम्युलेशन होता है उसको उड़ाना और उतारना सिखाया जाता है। ताकि किसी भी अनहोनी में पायलेट या प्लेन का नुकसान ना हो।
इससे पायलेट को रियल वल्ड परिदृश्य के बारे में अच्छे से अनुभूती होती है।
मेडिकल ट्रेनिंग – वर्चुअल रियलिटी का उपयोग मेडिकल संबंधी ट्रेनिंग के लिए भी किया जाने लगा है। वर्चुअल रियलिटी तकनीक के जरिए ट्रेनिंग ले रहे व्यक्ति के समक्ष विसुअल (Visual) रूप में चीजों को प्रस्तुत किया जाता है ताकि ट्रेनिंग ले रहा व्यक्ति आसानी से किसी भी चीज को सीख सके।
ट्रेनिंग संबंधी अभ्यास करने के लिए भी आजकल वर्चुअल रियलिटी का उपयोग किया जाता है ताकि किसी भी प्रकार की जान-माल की हानि को रोका जा सके।
ऐसे और भी कई अन्य क्षेत्र हैं जहाँ ट्रेनिंग के लिए वर्चुअल रियलिटी का सहारा लिया जाता है जैसे- अंतरिक्ष संबंधी कार्यों में, बड़े-बड़े वाहनों की ट्रेनिंग के लिए। आदि कामों में।
गेम्स और मनोरंजन के क्षेत्र में वर्चुअल रियलिटी का उपयोग
गेमिंग और मनोरंजन इंडस्ट्री ही वर्चुअल रियलिटी तकनीक से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली इंडस्ट्री में से एक है।
ज्यादातर अभी जो गेम्स बने हैं वे 2D स्क्रीन के लिए बनाए गए हैं। फिलहाल, उपलब्ध गेम्स का मजा VR के माध्यम से नहीं उठाया जा सकता है।
लेकिन अब जो नए AAA गेम्स बनाए जा रहे हैं। ये कुछ हद तक VR के माध्यम से खेले जा सकते हैं। गेमिंग इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का मानना है की VR तकनीक आने वाले समय में वीडियो गेमिंग इंडस्ट्री में क्रांति ला देगी।
VR के माध्यम से अभी भी बहुत सारे गेम्स खेले जाते हैं पर आने वाले समय मैं VR का गेमिंग के क्षेत्र में बहुत अहम रोल होगा।
हालांकि अभी जो गेम्स खेले जाते हैं वे रोमांचक तो हैं पर बहुत ज्यादा इमर्सिव नहीं हैं। गेम्स को इमर्सिव बनाने के लिए VR तकनीक का बहुत बड़ा रोल होगा।
जैसे-जैसे अच्छी गुणवत्ता वाले VR Headset सस्ते होंगे वैसे-वैसे VR तकनीक का उपयोग गेमिंग इंडस्ट्री में और बढ़ता चला जाएगा।
गेमिंग के अलावा सबसे ज्यादा VR के उपयोग होने की संभावना मनोरंजन के क्षेत्र में होगी।
अभी हम सिनेमाघर इसलिए जाते हैं ताकि रिलीज होने वाली मूवी का मजा बड़ी स्क्रीन पर ले सकें, और यदि मूवी 3D में हो तो मूवी का लुफ्त लेने के लिए हमें सिनेमाघर जाना ही पड़ता है क्योंकि 3D मूवी को सिनेमाघर में ही देखने में मजा आता है।
पर VR तकनीक यह सब कुछ बदल सकती है।
सिनेमाघर जाना, बड़ी स्क्रीन या 3D में मूवी देखना, यह सब कुछ बदल सकता है। VR तकनीक इतनी सक्षम है की यह सब कुछ बदल सकती है।
हम सिनेमाघर मुख्य रूप से बड़ी स्क्रीन, या 3D मूवी होने के कारण ही जाते हैं। VR तकनीक के माध्यम से हम मूवी को 3D मैं और बड़ी स्क्रीन पर घर बैठे ही देख सकते हैं।
यदि कोई ऐसा मैकेनिज्म बनाया जाए जिससे मूवी लोगों के VR हैडसेट पर रिलीज हो सके तो किसी भी व्यक्ति को सिनेमाघर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। और यह मनोरंजन इंडस्ट्री में क्रांति ला सकता है।
वर्चुअल रियलिटी काम कैसे करता है
वर्चुअल रियलिटी का मुख्य उद्देश्य आपको ऐसी रियलिटी में ले जाना है जो रियल है भी नहीं। लेकिन आपको रियल जैसी लगेगी।
आप वो कर सकें जो आप रियल में करते हैं।
पर यह काम कैसे करती है ?
VR तकनीक को बास्तविक जैसा अनुभव कराने के लिए मनुष्य की सभी इंद्रियों को वो सभी इनपुट दिए जाते हैं जो उन्है वास्तविक दुनिया में प्राप्त होते हैं, जैसे देखने के लिए आँखे, सुनने के लिए कान, कुछ पकड़ने या महसूस करने के लिए हाथ।
वर्चुअल रियलिटी में देखने के लिए VR हेडसेट, सुनने के लिए हेडसेट, और कुछ पकड़ने या महसूस करने के लिए DataGloves का इस्तेमाल किया जाता है ताकि वो सभी चीजें कर सको जो आप रियल लाइफ में करते हो।
इस तरह आप कंप्यूटर द्वारा बनाए गए किसी एनवायरमेंट में घुस कर वर्चुअल रियलिटी का अनुभव कर सकते हो।
जिस तरह आप दांए देखने के लिए दांए सिर घुमाते हैं और आपको आपके दांए तरफ का दृष्य दिखाई देने लगता है इसी तरह वर्चुअल रियलिटी में जब आप अपना सिर दांए तरफ घुमाते हैं तो कंप्यूटर को जायरोस्कोप सेंसर (gyroscope sensor) की मदद से पता लग जाता है की आपने सिर दांए तरफ घुमाया है इस तरह कंप्यूटर आपको वर्चुअल रियलिटी में दांए तरफ के दृष्य दिखाने लगता है ताकि आपको वास्तविक जैसा अनुभव हो।
जिस तरह हम वास्तविक दुनिया में साउंड को चारों तरफ से सुनते हैं और साउंड के आधार पर अनुभव करते हैं कि कौन सी चीज कहाँ और कितनी दूर है।
उसी तरह वर्चुअल रियलिटी में भी 3D साउंड का उपयोग किया जाता है ताकि किसी वस्तु द्वारा उत्पन्न हो रही ध्वनि से उसकी दिशा तथा दूरी का अंदाजा लगाया जा सके।
इस तरह से कंप्यूटर आपको वर्चु्अल रियलिटी का अनुभव कराता है जो रियल तो नहीं होती पर रियल होने जैसा अनुभव जरूर कराती है।
आने वाले समय में वर्चुअल रियलिटी तकनीक में और सुधार की गुंजाइश है ताकि लोगों का अनुभव और अच्छा हो सके।
वर्चु्अल रियलिटी का इतिहास
19वी शताब्दी 360 डिग्री पेंटिंग्स
19वी सदी में बनी 360 डिग्री पेनोरॉमिक पेंटिंग्स दर्शक की आँखों को हर तरफ से दृष्य से भर देती थीं जिससे इमर्सिव होने का अनुभव प्राप्त होता था।
1838 स्टीरियोस्कोपिक फोटो व्यूअर (Stereoscopic photos and viewers)
चार्स व्हीटस्टोन ने 2D इमेज को साइड-बाय-साइड रखकर स्टीरियोस्कोपिक यंत्र से देखने के लिए बनाया जिससे उस इमेज में डेप्थ (Depth) और इमर्सिव अनुभव प्राप्त हुआ। स्टीरियोस्कोपिक यंत्र की वजह से वह इमेज 3D में प्रतीत पड़ रही थी। तब से इसका उपयोग आभासी पर्यटन (virtual tourism) के लिए होने लगा।
1930s Pymalion’s Spectables
वर्चुअल दुनिया जहाँ, गंध, स्वाद, होलोग्राफ्कि जैसी चीजों का अनुभव भी किया जा सके इसका विचार Stanley G. Weinbaum की शॉर्ट स्टोरी Pymalion’s Spectables से आया।
1960s इवान सदरलैंड द्वारा पहला वी-आर हेड-माउंटेड डिस्प्ले
पहला हेड-माउंटेड डिस्प्ले इवान सदरलैंड द्वारा बनाया गया था। इसमें एक विशेष सॉफ्टवेयर था जो मोशन (Motion) को नियंत्रण कर सकता था। इसका उपयोग ट्रेनिंग के तौर पर किया गया था।
1987 वर्चुअल रियलिटी शब्द
वर्चुअल रियलिटी शब्द की उत्पत्ति जेरोन लैनियर (Jaron Lanier) द्वारा की गई। वे विजुअल प्रोग्रामिंग लैब के संस्थापक थे।
1993 सेगा वीआर हेडसेट की घोषणा
सेगा वीआर हेडसेट की घोषणा कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स शो में की गई थी। इसमें LCD स्क्रीन, हेड ट्रेकिंग, स्टूरियो साउंड शामिल थे। उस समय इसके लिए 4 गेम्स भी बनाए गए थे लेकिन यह प्रोटोटाइप से ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया।
1995 निन्टेंडो के द्वारा बनाया गया वर्चुअल बॉय (Nintendo Virtual Boy)
1995 के कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स शो में, निन्टेंडो ने VR-32 नामक एक VR हेडसेट को बाजार में उतारा और दावा किया कि खिलाड़ी जो खेल को इस डिवाइस के माध्यम से खेलेंगे वे इसमें इमर्स (immerse) हो जाएंगे।।
इसे बाद यह वीआर डिवाइस वर्चुअल बॉय के नाम से जाना जाने लगा, जो गेमिंग के लिए पहला होम वीआर डिवाइस था। साथ ही साथ यह दुनिया का पहला पोर्टेबल वीआर हेडसेट था।
21वी सदी स्मार्टफोन का दौर
21वी सदी में स्मार्टफोन आने के कारण HD Display की मानो क्रांति ही आ गई हो। स्मार्टफोन आ जाने के बाद मार्केट में सस्ते VR हेडसेट आ चुके थे जो मोबाइल को ही VR हेडसेट में तब्दील कर दे रहे थे।
2014 फेसबुक ने ऑक्यूलस वीआर को खरीदा
सोशल मीडिया के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म फेसबुक ने वीआर हेडसेट बनाने वाली कंपनी ऑक्यूलस को 2 बिलियन डॉलर में खरीद लिया था। इसके पीछे फेसबूक का काम मेटावर्श को रियलिटी में बदलना है।
2019 वायरलेस हेडसेट
2019 आते आते वर्चुअल रियलिटी की दुनिया में बड़ी बड़ी कंपनियों ने काफी तरक्की कर ली थी। अब कंपनियों के हाईएंड प्रॉडक्ट वायरलेस हेडसेड के रूप में आने लगे हैं। जिनकी डिस्प्ले दिखने में बहुत ही शानदार होती है।
आने वाले समय में वीआर तकनीक का क्या-क्या उपयोग होगा, यह समय हमें बताएगा